Friday, September 25, 2015

ZINDAGI........EK KITAAB....:     मेरे पिताजी श्री अजीत सिंह तोमर 'बजरंगी' जी द्...

ZINDAGI........EK KITAAB....:     मेरे पिताजी श्री अजीत सिंह तोमर 'बजरंगी' जी द्...:     मेरे पिताजी श्री अजीत सिंह तोमर 'बजरंगी' जी द्वारा लिखी हुई यह         मर्मस्पर्शी कविता ,यह तब लिखी गई थी जब मेरी दादी का स्व...

Thursday, September 24, 2015

    मेरे पिताजी श्री अजीत सिंह तोमर 'बजरंगी' जी द्वारा लिखी हुई यह         मर्मस्पर्शी कविता ,यह तब लिखी गई थी जब मेरी दादी का स्वर्गवास         हुआ था , आज दादी की अचानक बहुत याद आ रही  है !!!!सभी माँओं       को  समर्पित 

                                    माँ तो बस माँ है 


अंतिम सफर का 
अंतिम समय था 
अंतिम समय क्या अंतिम ही क्षण था 
परिवार के सब सदस्य 
शोक वृहल थे 
अश्रु पूरित नेत्रों से 
शोक सैय्या के चारों तरफ थे 
कुछ बैठे थे 
कुछ खड़े थे 
 कुछ घुटनों के बल पड़े थे 
हर किसी के मन में 
कुछ न कुछ सवाल था 
 बेटे सोच रहे थे पता नहीं किस क्षण हम 
माँ  के साये से मरहूम हो जायेंगे 
इस तपते धधकते संसार में अब हम 
किस साये का आसरा पाएंगे ?
बेटियां सोच रही थी पीहर को क्या अब भी हम 
माइका कह पाएंगी ?
क्या अब भी हम माँ जैसा दुलार 
मइके में पाएंगी ?



पोते पोतियों की पीड़ा की 
कुछ अलग ही दास्तान थी 
उनकी पीड़ा एक 
फेहरिश्त के समान थी 
कोई सोच रही थी माँ की झिड़की से  
अब हमें कौन बचाएगी ?
 कोई सोच रही थी परियों की कहानी 
कौन सुनाएगी ?
कोई सोच रही थी दादी अम्मा के प्यार का विकल्प 
क्या हम ढूंढ  पाएंगी?
कोई सोच रहा था दादी अम्मा का "बैंत " छुपा कर अब हम 
कैसे घर में हड़कम्प मचवाएंगे ?
 मम्मी की मार से बचने के लिए अब हम 
किसके आँचल में जगह पाएंगे ?
बहुओं की पीड़ा कुछ
अलग ही तरह की थी 
 उनके चेहरे की हवाइयां  उड़  रही थी 
वो सोच रही थी 
सासुमा की सेवा में  कहीं हमसे 
कोई कमी तो नहीं रह गई ?
कहीं हमसे कोई भूल तो नहीं हो गई ?
 कहीं सासू माँ हमसे 
रूठ कर तो नहीं  जा रही ?
 यदि ऐसा हुआ तो हम अपने आपको 
 कभी माफ़ नहीं कर पाएंगी 
कैसे अपने मन को 
ढांढस बँधायेंगी ?
हम तो इसका कोई प्रायश्चित  भी 
नहीं कर पाएंगी !!
भाइयों सहित मेरे मन में भी सवालों का 
बवंडर छाया  हुआ था 
 मगर अँधेरे की आंधी की भाँती उससे निकलने का कोई 
रास्ता नहीं ढूंढ पा रहा था 
तभी मुझे आशा की एक 
किरण  दिखाई दी 
माँ के शरीर में एक 
 हलचल  सी  महसूस हुई 
माँ की पलकों के पीछे से 
मुझे एक ज्योति दिखाई दी 
मैं स्वार्थी प्राणी भला इस मौके को 
कैसे जाने देता ?
मैंने   माँ के कानों  में एक 
सवाल दाग दिया 
माँ मां तेरी कोई  अंतिम इच्छा हो 
तो बता ?
हम उसे अवश्य पूरा करेंगे 
ऐसा कहती दफा मेरे  चेहरे पर
पूरा आत्माभिमान था
शायद मेरे मन में माँ के प्रति
सर्वस्व समर्पण का अभियान था
माँ ने हलकी सी आँखें खोली
धीरे से बोली
"बेटा
तुम सबने मेरी बहुत सेवा की
मैं बहुत खुश हूँ
मेरी अंतिम इच्छा  यह ही है कि
भगवान मेरे परिवार को
सदा सुखी रखे
परिवार में हमेशा सुख शांति रहे
तुम सदा तरक्की करो "

 बस इतना कहकर माँ की आँखों की
 ज्योति लुप्त होगई
मैं जो अपने को श्रवण कुमार समझ
आसमान में घूम रहा था
हरिश्चंद्र सा दानी समझ
आसमान को चूम रहा था
माँ की अंतिम इच्छा सुंन
धूमकेतु की भाँती
धड़ाम से नीचे गिर गया
 मेरी आँखें जो अभी तक सूखी थी
अचानक उनका बाँध टूट गया
तब मेरी अंतरात्मा ने मुझे धिक्कारा
रे पगले
तू  अपनी माँ की अंतिम इच्छा पूरी कर
उसके ऋण से उऋण होना चाहता है?
 माँ का एहसान तू तू इस जनम में तो क्या
किसी जनम में भी नहीं उतार सकता
देखा
माँ जाते जाते भी तुझसे कुछ लेने के बजाये
तुझे वह संपत्ति  दे गई
जिसके सम्मुख संसार की समस्त संपत्तियां
गौण रह गई
अंतिम समय माँ की आत्मा से बोला गया
ऐसा मुक्त आशीर्वचन
तो देवताओं को भी दुर्लभ सामान है
तू तो दुनिया का सबसे खुशनसीब
 इंसान है
रे मूर्ख
माँ  लेना नहीं बस देना जानती है
माँ -तो- बस- माँ- है
माँ का क्या इस जग में
 और कोई प्रमाण है !!!!!!!!!!!!!!!!!